Description
पृथ्वी के सभी देश उत्पादक और उपभोक्ता के रूप में बॅट चुके हैं। ज्ञान अब उत्पादन के थैलों में बंद होकर बाजार में बिक रहे हैं जिसे हम आधुनिक तकनीक के रूप में उपभोग कर गौरवान्वित हो रहे हैं। उदारीकरण के बाद भारत भी उत्पादक देशों के समूह में शामिल हो गया, लेकिन उपभोक्ता बन कर रह गया। इसके पीछे हमारी आधुनिक तकनीकों के लिए उपयुक्त ज्ञान ही दोषी हैं। भारत प्राचीन काल से ज्ञान, समृद्धि की भूमि के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन वर्तमान परिस्थिति में हमारे ज्ञान के खरीदार नहीं होने से हम वेरोजगारी और विपन्नता के लिए मशहूर हो चुके हैं।
प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं समस्याओं के रोकथाम को आलोकित करती है। हमारे ज्ञान के केन्द्र तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशीला विकाऊ थे, हम अपना ज्ञान विकाऊ बनाकर ही समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए हमें ज्ञान का आचमन करना होगा।
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