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वेद सस्कृत साहित्य का सबसे प्रचीन ग्रन्थ माने जाते हैं, वेद नित्य हैं इसलिए वेदों को अपुरुषेय कहा गया है। ‘वेदोऽखिलोधर्ममूलम्‘ वेद सभी धर्माे के मूल बताए जाते हैं, वेदों को चार भागों में विभाजीत किया गया है जिसमें क्रमषः हर वेद की चार शाखाएॅ प्राप्त होती है – संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्। उपनिषदों को वेदान्त भी कहा गया है। वेदान्त का अर्थ है वेदों का अन्तिम भाग क्योंकि उपनिषदों का निर्माण वेदों के अन्त में हुआ है। वेदों की चतुर्थ शाखा उपनिषद् है जो प्रस्थानत्रयी का एक भाग है। उपनिषद् -‘उप सामीप्येन नितरां सीदन्ति प्राप्नुवन्ति परं ब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद्।

Description

सुमन कुमारी का जन्म मार्च 1992 को हरियाणा प्रान्त के भिवानी जिले के गोपालवास गॉव में हुआ। इनके पिता का नाम श्री शहिद सुबेदार धर्मपाल सिहॅ एवं माता का नाम श्रीमति बीरमति है। इन्होंने प्राथमिक षिक्षा गॉव के सरकारी विद्यालय से प्राप्त की। इसके पश्चात् इन्होंने कन्या गुरुकुल पंचगॉव से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद नेशनल कॉलेज लोहारु से बी. एड. की उपाधि प्राप्त की। इसके पष्चात् एम ए की उपाधि इन्होंने कुरुक्षेत्रा विश्वविद्यालय से प्राप्त की। और यु जी सी नेट की परीक्षा जुलाई 2018 में उत्तीर्ण की। लेखिका की कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद् का सक्षिप्त परिचय प्रथम प्रकाशित पुस्तक है।

वेद सस्कृत साहित्य का सबसे प्रचीन ग्रन्थ माने जाते हैं, वेद नित्य हैं इसलिए वेदों को अपुरुषेय कहा गया है। ‘वेदोऽखिलोधर्ममूलम्‘ वेद सभी धर्माे के मूल बताए जाते हैं, वेदों को चार भागों में विभाजीत किया गया है जिसमें क्रमषः हर वेद की चार शाखाएॅ प्राप्त होती है – संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्। उपनिषदों को वेदान्त भी कहा गया है। वेदान्त का अर्थ है वेदों का अन्तिम भाग क्योंकि उपनिषदों का निर्माण वेदों के अन्त में हुआ है। वेदों की चतुर्थ शाखा उपनिषद् है जो प्रस्थानत्रयी का एक भाग है। उपनिषद् -‘उप सामीप्येन नितरां सीदन्ति प्राप्नुवन्ति परं ब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद्।

उपनिषद् भारतीय दर्षन की सबसे उच्चत्तम कोटी के ग्रन्थ हैं। उपनिषदों में जीव तथा परमात्मा के बीच संसारिक मोह माया का विस्तृत वर्णन किया गया है। ज्ञानेन्द्रियॉ, कर्माेन्द्रियॉ और मन को संयमित करके ब्रह्म जीव और जगत का ज्ञान प्राप्त करना उपनिषदों का परम उद्देष्य है। इन उपनिषदों में कौषीतकिब्राह्मणोपनिषद् का भी अपना विषिष्ट स्थान है। यह ऋग्वेदिय उपनिषद् है जो ऋग्वेद के कौषीतकि आरण्यक अथवा शांखायन आरण्यक के तृतीय, चतुर्थ, पंचम और षठ अघ्यायों से मिलकर बना है।

इसमें देवयान व पितृयान नामक दो भागों का वर्णन है जिसके द्वारा यह आत्मा मृत्यु पष्चात् गमन करती है इसमें काषि राज दिवोदास प्रतर्दन ने इन्द्र से आत्म विद्या का उपदेश प्राप्त किया है। काषिराज अजातषत्रु ने बालाकि गार्ग्य को आत्मविद्या का उपदेष दिया है। कौषीतकिब्राह्मणोपनिषद् में आत्मा को ब्रह्म स्वीकार किया गया है।

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