Description
सर्प जब कुण्डली मारकर बैठता है तब उसका मुँह और पूंँछ समीप-समीप होता है। विद्वान कवियांे को अवश्य सर्प की यह आकृति अच्छी लगी होगी अतः उन्हांेने इसी आकृति के छन्द की संरचना कर डाली होगी और इस छन्द को ‘कुण्डली’ नाम कहा जाने लगा होगा। कुण्डली में भी सर्प की ही तरह प्रथम अक्षर और अन्तिम अक्षर एक होता है और रचना गोल-गोल घूमी हुई होती है जैसे कोई सर्प कुण्डली मारकर बैठा हो। ईश्वर की कृपा से साहित्त्य क्षेत्ऱ में मेरी जो छवि बनी है वह व्यंग्यकार, गीतकार, ग़ज़लकार, कहानीकार के रूप में है इनमें ईश्वर नें जो लिखवाया वो लिखा गया। मेरी इच्छा हुई कि समाज को केवल व्यंग्य सुनाना अथवा गीत सुनाना पर्याप्त नही है, समाज को अच्छी नीतियाँ बताना भी साहित्यकार का कत्र्तव्य है। अतः नीतियुक्त कुण्डलियांँ लिखने की प्रेरणा हुई और मांँ सरस्वती जी की कृपा और मेरी माँ के आशीर्वाद से 1 माह में 210 कुण्डलियों का निर्माण हो गया जो आप के सम्मुख प्रस्तुत है।











![Strawberry Milk-shake [half] Package](https://i0.wp.com/golpapa.com/wp-content/uploads/woocommerce-placeholder.png?resize=300%2C300&ssl=1)


Reviews
There are no reviews yet.