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इस पुस्तक को यदि ग्रन्थ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह ग्रन्थ उन घटनाओं का दस्तावेजीकरण है जिसके साक्षी कई लोग रहे हैं, लेकिन वे लोग उनके घटित होने के प्रयोजन से अनभिज्ञ थे। उनके लिए तमाम घटनाएँ मात्र चमत्कार थी। अज्ञात विषय हमेशा कौतुहल पैदा करते हैं और वे जनसामान्य के द्वारा चमत्कार की श्रेणी में रख दिए जाते हैं। इस ग्रन्थ में उन्हें सहेजने की चेष्टा की गई है ता कि वर्तमान और आगामी पीढ़ी यह समझ सके कि सच्चे साधू, सन्यासी या सिद्ध पुरुष कितने सदाचारी, श्रेष्ठ और शक्तिमान थे। आज के प्रपंची युग में अगर कोई सार्वजानिक रूप से हाथ ऊपर कर शून्य से कोई वस्तु प्राप्त कर ले तो दर्शकगण दो धाराओं में बंट जाएँगे। एक उन्हें जादूगर,मदारी या ढोंगी कहेगा तो दूसरा आध्यात्मिक शक्तियौ को स्वीकार कर चरणों में नतमस्तक हो जाएगा। दरअसल समाज की प्रारंभ से यही समस्या रही है, वह सत्य को बेरहमी से नकार देती है और मिथ्या को तत्परता से गले लगा लेती है।

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Description

इस पुस्तक को यदि ग्रन्थ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह ग्रन्थ उन घटनाओं का दस्तावेजीकरण है जिसके साक्षी कई लोग रहे हैं, लेकिन वे लोग उनके घटित होने के प्रयोजन से अनभिज्ञ थे। उनके लिए तमाम घटनाएँ मात्र चमत्कार थी। अज्ञात विषय हमेशा कौतुहल पैदा करते हैं और वे जनसामान्य के द्वारा चमत्कार की श्रेणी में रख दिए जाते हैं। इस ग्रन्थ में उन्हें सहेजने की चेष्टा की गई है ता कि वर्तमान और आगामी पीढ़ी यह समझ सके कि सच्चे साधू, सन्यासी या सिद्ध पुरुष कितने सदाचारी, श्रेष्ठ और शक्तिमान थे। आज के प्रपंची युग में अगर कोई सार्वजानिक रूप से हाथ ऊपर कर शून्य से कोई वस्तु प्राप्त कर ले तो दर्शकगण दो धाराओं में बंट जाएँगे। एक उन्हें जादूगर,मदारी या ढोंगी कहेगा तो दूसरा आध्यात्मिक शक्तियौ को स्वीकार कर चरणों में नतमस्तक हो जाएगा। दरअसल समाज की प्रारंभ से यही समस्या रही है, वह सत्य को बेरहमी से नकार देती है और मिथ्या को तत्परता से गले लगा लेती है।

इस ग्रन्थ में क्रमिक रूप से सिद्ध पुरुषों की चार पीढ़ियों की स्मृतियों को सहेजने की चेष्टा की गई है। इन चार सिद्ध पुरुषों में क्रमिक रूप से गुरु प्रपितामह श्री धाताराम बाबा, गुरु पितामह अविनाशी महाराज जी, गुरु अलखराम महाराज एवं पूज्य स्वामी जी के जीवन वृत्त को तथ्यौ पर ही औपन्यासिक स्वरूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इसके प्रस्तुतिकरण में कल्पना का लेश मात्र इस्तेमाल न करके गहन शोध को आधार बनाया गया है। इस ग्रन्थ के पन्नों पर दर्ज होने से पूर्व ये कथाएँ जनमानस की स्मृतियों में सुरक्षित थीं। जब कोई तथ्य पन्नो पर अंकित हो जाता है तो व्याख्याकार और टिपण्णीकार उसे इतिहास कहते हैं, जब वे जनमानस की स्मृतियों में होती है और कथाओं का रूप ले लेती है तो उन्हें जनश्रुति कहा जाता है। जनश्रुतियां कभी भी इतिहास जैसी प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सकीं। अगर उन सिद्ध पुरुषों की कथा इस ग्रन्थ में दर्ज नहीं होती तो शनैः शनैः समय अन्तराल मे धूमिल होकर इतिहास से ही ख़ारिज हो जाने की पूर्ण सम्भावनाये थी। इस दृष्टि से इस ग्रन्थ की महत्ता और भी बढ़ जाती है।

इस ग्रन्थ के बीच-बीच में उनके उपदेशों को भी यथासंभव स्थान दिया गया है। कहते हैं ‘शब्द ब्रम्ह है।‘ शास्त्रों में वर्णित यह उक्ति अगर सत्य है तो यह ग्रन्थ सत्य की खोज में रूचि रखने वाले सभी पाठकों के लिए है। इस ग्रन्थ में गुरु मुख से उच्चारित ऐसे अनेक शब्द अंकित हैं, जो ब्रम्ह-आनन्द कि अनुभूति कराते हैं। इन शब्दों के श्रेष्ठता की अंतर्वोध के लिए निश्चय ही गहन चिंतन मनन और विवेचना की आवश्यकता है।

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