Description
ग़ज़लों का एक रंगीन गुलदस्ता है रेख्ता। इस किताब की ग़ज़लें जुबाने रेख्ता में हैं। रेख्ता को दुसरे लफ्ज़ो में पुरानी उर्दू भी कहते हैं। जो इस दौर में गायब है। फारसी, हिंदावी और अरबी के अलफाज़ो को मिलाकर इक जुबान का आगाज़ हुआंधा हजारों साल पहले। शायर अमिर खुसरो इसी रेखता जुबान का इस्तेमाल करते रहे। आगे जाकर, मीर तकी मीर, मिरज़ा ग़ालिब, इब्राहिम जोक, मोमिन खान मोमिन, दाग़ देहलवी और बेशुमार शायरों ने रेख्ता की तहज़ीब को आगे बढ़ाया। “हुआ मैं राजलसरा तो हैरत से क्यों जहां देखता है। यह कोई नयी तुरात तो नहीं मेरी, जुबाने यह आतिश सुखन लगाई थी कभी मीर व ग़ालिब ने जिसकी आंच पर तु आज अपनी राजल सेकंता है।
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